लोगों की राय

अतिरिक्त >> सरहद के आर पार

सरहद के आर पार

सुनील गंगोपाध्याय

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8628
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

301 पाठक हैं

सरहद के आर पार पुस्तक का आई पैड संस्करण

Sarhad Ke Aar Paar - A Hindi Ebook By Sunil Gangopadhyay

आई पैड संस्करण


त्रिलोचन का जिस्म अब भी पसीने से लथपथ है। जब वह बेहद थका-माँदा और भूखा होता है तो उसे इच्छा होती है कि दुनिया की तमाम वस्तुओं को तोड़-फोड़कर बर्बाद कर दे। उसका शरीर सिर्फ यह बात कहने के दौरान सतर्क हो उठता है।

बाबाजी ने महसूस किया, अभी त्रिलोचन से यह सब ऊँचे दर्जे की बात नहीं जमेगी हकीमपुर मेला लगने में अब भी लगभग पंद्रह दिन बाकी हैं, इसलिए घबराने की कोई बात नहीं। लेकिन गीत की बंदिश तैयार करने के आवेशपूर्ण काम छोड़कर इस लहकती धूप में क्या किसी को रिक्शा चलाना अच्छा लगता है? यह काम बाबाजी को किसी भी वक्त अच्छा नहीं लगता, लेकिन एक मुए पेट के लिए दो कौर भात का इंतजाम कैसे किया जाए?

बाबाजी की घरवाली का सात साल पहले देहांत हो चुका है। लेकिन अभी कुल मिलाकर छह महीने हुए होंगे कि उसके मन में ऐसी तरंग आई कि उसने कोरी लुंगी को गेरुआ रंग से रंग लिया। अब दाढ़ी-बाल बनवाने का भी कोई झंझट नहीं रहा। लेकिन काम के प्रति उसकी लापरवाही ध्यान में आने पर त्रिलोचन बीच-बीच में मजाक में कहता है, ‘साधु का बाना धारण किया है? रिक्शा चलाने से तेरे सम्मान को चोट पहुँचती है तो जाकर भीख माँगा कर। ज्यादा पैसा मिलेगा।’
इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ यहाँ देखें।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai